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तकदीर

abhi.aadi
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तकदीर कहाँ से मिलती है मैंने एक दिन भगवन से पूछा भगवन बोले नहीं चुप रहे
तब एस से पूछा उस से पूछा कोई बोला नहीं बस यही की यह मिलती नहीं लेनी परती है
तब एक दिन मन से पूछा मन बोला मैं तेरे मन में ही बसती हूँ
केर लो मन को पक्का कर्मो को सच्चा तो तभी साथ चलती हूँ
उस दिन से केर लिया मन को पक्का कर्मो को सच्चा

थाम लिया नेक नीयत और सच्चे कर्मो का हाथ
तब सब ने पूछा यह कहाँ से मिली
मैंने बताया रोज रात को सपने में आती है
वही फिर तदबीर में बदल जाती है
मन ने बोला कह दे सब से सच्चे कर्मो से मिलती है
मन बोला अभिमान न केर जुक केर चल निभ केर चल
तभी यह सदा साथ चलती है

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